अल-मसीह की हयाते-अक़दस
आर. बख़्त
ज़ेरे-नज़र किताब में मुसन्निफ़ ने रब्बुना अल-मसीह की शख़्सियत को रोज़मर्रा की ज़िंदगी और आम वाक़ियात के ताने-बाने में इस तरह समोया है कि वह अजनबी और ग़ैरमानूस नहीं लगते। आहिस्ता आहिस्ता यह एहसास उभर आता है कि वह फ़ौक़ुल-बशर हैं। ज्यों-ज्यों कहानी आगे बढ़ती है हमारी उम्मीदें उनसे वाबस्ता होती चली जाती हैं। हम कहानी के दीगर किरदारों की तरह उन्हें न सिर्फ़ अपनी ज़मीनी दुखों का इलाज समझने लगते हैं बल्कि रूहानी करब के मुआलिज भी।