यूहन्ना की इंजील बड़ी गहराइयों में ले जाती है। हम किस तरह इन गहराइयों की तय तक पहुँच सकते हैं? ‘आओ, ख़ुद देख लो’ उस शख़्स की सहायता करना चाहती है जो यह गहरी गहरी बातें बेहतर तौर से समझना चाहता है, बल्कि जो इससे बढ़कर इसका अपनी ज़िंदगी से ताल्लुक़ जानना चाहता है।
ईसा मसीह को अंधा-धुंद ईमान पसंद नहीं है। इसलिए वह आज भी दावत देता है कि मेरे पास आओ और ख़ुद देख लो कि मैं कौन हूँ। ख़ुद देख लो कि अपने मन, तन बल्कि पूरी जान से मेरे
पीछे चलने का क्या मतलब है।
क़ारी की सहूलत के लिए हर सबक़ के आख़िर में जेरे-ग़ौर हवाला दर्ज है।
‘आओ, ख़ुद देख लो’ की सीरीज़ एक ही किताब की सूरत में।
1: फ़ज़ल पर फ़ज़ल
2: रूहानी शफ़ा
3: आओ, ख़ुद देख लो
4: इलाही शरबत
5: सच्चा मक़दिस
6: जो नए सिरे से पैदा हुआ हो
7: दूल्हे का दोस्त
8: ज़िंदगी का पानी
9: फलता-फूलता ईमान
10: क्या तू तनदुरुस्त होना चाहता है?
11: ईसा मसीह पर क्यों भरोसा. चार ठोस गवाह
12: बादशाही के चार उसूल
13: ज़िंदगी की रोटी
14: ईसा मसीह को पाना
15: जो प्यासा हो
16: पकड़ा गया
17: सच्चा शागिर्द
18: नूर या अंधेरा? अंधे की शफ़ा
19: चरवाहे की आवाज़
20: सच्ची क़ुरबानगाह
21: अबदी जिंदगी कैसे पाऊँ?
22: ख़ुशबू या बदबू? सफल ज़िंदगी का राज़
23: ज़मीन में दाना. अल-मसीह के पीछे हो लेने का मतलब
24: अल-मसीह पर ईमान—यह क्या है?
25: शैतानी ताक़तों से कैसे बचूँ?
26: अल-मसीह की नई बिरादरी
27: मत घबराओ. अबदी मनज़िल की राह
28: फ़तहमंद ज़िंदगी. रूहुल-क़ुद्स का काम
29: मैं अंगूर की बेल हूँ. फल लाने का राज़
30: दुश्मन के रूबरू मज़बूती. रूहुल क़ुद्स की ज़बरदस्त हिमायत