हज़रत यूसुफ़
आर. बख़्त
हज़रत यूसुफ़ को अपने ही भाइयों से बेचकर मिसर भेजा गया। वहाँ उन्हें हलीमी और ताबेदारी सीखनी पड़ी। मुसीबतों के पहाड़ के बावुजूद वह हिम्मत न हारे बल्कि अपनी हिकमत और इंतज़ाम चलाने की महारत को बढ़ाकर मिसर के हाकिम बन गए। इस ओहदे पर वह मिसर और अपने ख़ानदान को काल से बचाने का वसीला बन गए।
इस किताब में हज़रत यूसुफ़ की जीती-जागती तस्वीर सामने आती है।