बातचीत : अपने ईसाई दोस्त स एक मस्लमान की गुफ़्तगू
बादरू डी केटरेगा & डेविड डबलयू शेंक
जब दूसरों के मज़हब को सीखने की बात आती है तो ज़्यादातर लोग अपने ही मज़हबी उलमा से सीखने तक महदूद रहते हैं। कहने का मतलब यह है कि ईसाई हज़रात ईसाई उलमा से ही इस्लाम के बारे में सीखते हैं जबकि मुसलमान हज़रात अपने मज़हबी उलमा से ही ईसाई ईमान के मुताल्लिक़ सीखते हैं। यहाँ तक कि हर मज़हब में लोग अपने ही माहिरीन से सीखते हैं कि “वह लोग” क्या अक़ीदा रखते हैं और क्या नहीं। क्या यह अच्छा नहीं होगा कि हम “उन लोगों” को ही बताने दें कि वह क्या मानते हैं?
इस किताब में यह बहुत माहिराना अंदाज़ में बयान किया गया है। इसमें एक सुन्नी मुसलमान बनाम बादरू केटरेगा बयान करते हैं कि इस्लाम क्या है। साथ साथ एक ईसाई बनाम डेविड शेंक पेश करते हैं कि ईसाई ईमान क्या है। गो गुफ़्तगू के दौरान दोनों मज़हबों में फ़रक़ साफ़ नज़र आता है तो भी वह इज़्ज़तो-एहतराम से एक दूसरे से बात करते हैं। हर बात दोस्ताना रूह में की जाती है।
मुहतरम बादरू केटरेगा (एम ए, लंदन) की पैदाइश यूगांडा के एक मुसलिम घराने में हुई। वह बेशुमार यूनिवर्सिटियों में लेक्चरर की हैसियत से फ़ायज़ रहे। इस वक़्त वह साऊदी अरब में यूगांडा के सफ़ीर हैं। मुहतरम डेविड शेंक (पी एच डी, न्यूयॉर्क) एक ईसाई घराने में पैदा हुए जो तंज़ानिया में अपनी ख़िदमात अंजाम दे रहा था। वह छः साल तक कीनिया में लेक्चरर रहे, वहीं उनकी दोस्ती बादरू साहब से हो गई।
यह दोनों दोस्त अपने अपने मज़हब में बुज़ुर्ग शुमार किए जाते हैं। उनकी शदीद आरज़ू है कि लोग दोस्ताना रूह में ईसाइयत और इस्लाम का अच्छी तरह मुतालआ करें। यह किताब दोनों की बातचीत का रिकार्ड है।