नई दुनिया
बख़्त
मंज़ूर एक नई दुनिया में जाग उठता है। वहाँ उसे ज़िंदगी का असल मक़सद पता चलता है। मक़सद यह है कि शहज़ादे के हुज़ूर आए। वह रवाना होता है। इस रूहानी सफ़र के दौरान कई-एक रुकावटें सामने आती हैं—शुकूक, ख़ानदान के रिश्ते, शहवतपरस्ती, यह सोच कि तमाम मज़हब एक जैसे हैं और यह कि ख़ुदा के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है, मादापरस्ती, मज़हब के रस्मो-रिवाज, शरीअत के तक़ाज़े और तसव्वुफ़ की जिद्दो-जहद। क्या वह शहज़ादे तक पहँचने में कामयाब होगा?